आयुर्वेद एवं योग के जरिए निरोग होने का हब बन रहा गोरखपुर
प्रदेश का पहला आयुष विश्विद्यालय और गोरक्षनाथ विश्वविद्यालय बनेगा इसका जरिया असाध्य रोगों का भी बिना किसी दुष्प्रभाव के हो सकेगा इलाज लखनऊ, पूर्वांचल के प्रमुख शहरों में शुमार गोरखपुर आयुर्वेद एवं योग के जरिए निरोग होने का हब बनने की ओर अग्रसर है। आने वाले कुछ वर्षों में ही अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण यह न केवल पूर्वांचल का बल्कि सटे हुए उत्तरी बिहार और नेपाल की तराई के करोड़ों लोगों के लिए भी गोरखपुर “आरोग्य धाम” सरीखा होगा।
गोरखपुर में निर्माणाधीन प्रदेश का पहला आयुष विश्वविद्यालय (महायोगी गुरु गोरक्षनाथ) और गुरु गोरखनाथ विश्वविद्यालय के तहत बन रहे इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में आयुर्वेद और योग समेत इलाज के परंपरागत विधा की संपन्न फैकल्टी इसका जरिया बनेंगी।
मुख्यमंत्री योगी आदियनाथ सरकार की शुरू से ही यह मंशा रही है कि उत्तर प्रदेश मेडिकल टूरिज़म का हब बने। प्रदेश को मेडिकल टूरिज्म का हब बनाने में आयुर्वेद की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। यही वजह है कि योगी सरकार आयुर्वेद को खासा प्रोत्साहन दे रही है।
गोरखपुर में है आयुर्वेद एवं योग की संपन्न परंपरा
गोरखपुर में आयुर्वेद एवं योग की संपन्न परंपरा रही है। खासकर मुख्यमंत्री गोरखपुर स्थित जिस गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर हैं उसकी आयुर्वेद और योग में शुरू से रुचि रही है। गुरु श्री गोरक्षनाथ चिकित्सालय की स्थापना से बहुत पहले गोरखनाथ मंदिर के कैंपस में महंत दिग्विजय नाथ आयुर्वेद चिकित्सालय की स्थापना हो चुकी थी। महायोगी विश्वविद्यालय में जिस इंट्रीग्रेटेड इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज की स्थापना की गई है उसमें भी आयुर्वेद सहित इलाज की अन्य परंपरागत विधाओं का सम्पन्न कैंपस है।
विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉक्टर प्रदीप राव के अनुसार यहीं विश्वविद्यालय के कैंपस में ही आयुर्वेद की दवाओं का भी निर्माण होगा। इसके लिए हाल में वैद्यनाथ प्राइवेट लिमिटेड और कई शिक्षण से संस्थाओं के साथ मेमोरंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) भी हुए हैं। इन दवाओं के लिए गुणवत्तापूर्ण कच्चा माल मिले इसके लिए चौक (महराजगंज) स्थित मंदिर के फार्म और पीपीगंज स्थित कृषि विज्ञान केंद्र पर 5-5 एकड़ में बतौर मॉडल आयुष वाटिका बनेगी। बाद में इससे किसानों को भी जोड़ा जाएगा।
रही तन और मन को निरोग करने की विधा तो इसे लोककल्याण के लिए व्यवहारिक रूप देने का श्रेय महायोगी गुरु गोरखनाथ को ही जाता है। मंदिर में योगियों की योग की विभिन्न मुद्राओं में फोटो और उनसे होने वाले लाभ का विवरण है। मंदिर की ओर से योग के बाबत कई पुस्तकें भी प्रकाशित हुई हैं। इनमें से एक किताब (हठयोग स्वरूप एवं साधना) खुद योगी आदित्यनाथ ने लिखी है। बड़े आयोजनों के दौरान योग एवं आयुर्वेद पर चर्चा आम है।
यही नहीं पहले से ही गोरखपुर में प्राकृतिक तरीके से इलाज के लिए एक केंद्र (आरोग्य मंदिर) है। इस सपंन्न परंपरा की वजह से गोरखपुर में आयुर्वेद एवं योग की संभावना बढ़ जाती है।
गोरखपुर में बन रहा प्रदेश का पहला आयुष विश्विद्यालय
इसी वजह से गोरखपुर में प्रदेश का पहला आयुष विश्वविद्यालय बन रहा है। इसका शिलान्यास 28 अगस्त 2021 को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने किया था। उम्मीद है कि यह 2024 तक बनकर तैयार हो जाएगा। बजट में भी इसके लिए 113.52 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इसके बनने से इलाज के साथ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं शोध को बढ़ावा मिलेगा।
दरअसल आयुर्वेद भारत की अपनी और प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है। यह बिना किसी दुष्प्रभाव के रोगों के रोकथाम या निरोग करने की विधा। इसीलिए इसे ‘दीर्घायु का विज्ञान’, भी कहा जाता है। विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणाली आयुर्विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है जिसका सम्बन्ध मानव शरीर को निरोग रखने, रोग हो जाने पर रोग से मुक्त करने अथवा उसका शमन करने तथा आयु बढ़ाने से है।
यही वजह है कि आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए आयुष मिशन योजना के तहत अयोध्या में राजकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय की स्थापना की जा रही है। इसी योजना के तहत उन्नाव, श्रावस्ती, हरदोई, संभल, गोरखपुर एवं मीरजापुर में 50-50 बेड वाले एकीकृत आयुष चिकित्सालयों की भी स्थापना की जा रही है।
80 प्रतिशत लोग इलाज के लिए आयुर्वेद पर निर्भर
एलोपैथ के इस जमाने में भी 80 फीसद लोग प्राथमिक इलाज के लिए आयुर्वेद का ही सहारा लेते हैं। वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान पूरी दुनिया ने आयुर्वेद का लोहा माना, खासकर शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में।