काशी खंड के अनुसार काशी के मंदिरों के नाम बदले जाएंगे। 45 ग्रंथों को आधार बनाकर मंदिरों के वास्तविक नाम रखे जाएंगे। 30 मंदिरों की पहचान कर ली गई है। बीएचयू के वैज्ञानिक, ब्राह्मण महासभा और काशी के विद्वान अध्ययन कर रहे हैं।

काशी के पग-पग पर विराजमान तीर्थ जल्द ही देश दुनिया के सामने होंगे। बीएचयू के वैज्ञानिक, ब्राह्मण महासभा के साथ ही काशी के 30 विद्वानों की टीम मंदिरों के इतिहास, उनकी पौराणिकता की जानकारी जुटा रही है। 11वीं सदी के 45 ग्रंथों का अध्ययन किया जा रहा है।

कालखंड के अनुसार ही काशी में देवताओं का वास और उनके वास्तविक नाम की खोज की जा रही है। काशी खंड के अनेक देवी देवताओं के स्थान बदल चुके हैं। बीते सौ वर्षों में पुस्तक लिखने वालों ने इन्हें लुप्त लिख दिया या नाम बदल दिया है, लेकिन इसके मूल कारण पुराण में कहे गए देवता के स्थान और दिशा निर्देश पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।

अब तक 30 मंदिरों की खोज
केंद्रीय ब्राह्मण महासभा के प्रदेश अध्यक्ष अजय शर्मा ने बताया कि अब तक 30 से अधिक लुप्त हो चुके मंदिरों की खोज की गई है। कई प्राचीन मंदिरों के नाम बदल गए हैं। टीम में बीएचयू धर्म संकाय के प्रो. माधव जनार्दन रटाटे, काशी करवत मंदिर के महंत महेश शंकर उपाध्याय, मंगला गौरी मंदिर के महंत नरेंद्र पांडेय, काशी विद्यापीठ में संस्कृत विभाग के डॉ. उपेंद्र देव पांडेय, हिमांशु पांडेय व मनीष पांडेय काम कर रहे हैं। अध्ययन की रिपोर्ट जिला प्रशासन, संस्कृति और पर्यटन विभाग को दी जाएगी।

इन पांच प्रमुख मंदिरों के नाम बदलेंगे

तिलभांडेश्वर की जगह जांगलेश्वर महादेव
शूलटंकेश्वर के स्थान पर माधवेश्वर
इंद्रेश्वर की जगह महासिद्धिश्वर
सिद्धेश्वर का मूल नाम त्रिशूलीश्वर
बृहस्पतिश्वर की जगह मोहनेश्वर महादेव
मंदिरों के नाम भी तय किए, लेकिन प्रशासन की अनुमति से बदलाव
प्रदेश अध्यक्ष के मुताबिक, ढाई साल के अध्ययन के बाद पता चला कि बृहस्पति जी द्वारा संकटा घाट स्थित आत्मावीरेश्वर मंदिर के सामने स्थापित लिंग बृहस्पतिश्वर मंदिर है, लेकिन दशाश्वमेध घाट पर स्थापित मोहनेश्वर महादेव को लोग बृहस्पतिश्वर कहते हैं। माधवपुर गांव के माधवेश्वर को लोग शूलटंकेश्वर कहकर पूजने लगे हैं, जबकि मूल शूलटंकेश्वर महादेव दशाश्वमेध घाट पर हैं। संत कीनाराम आश्रम के अंतर्गत एक मंदिर में विराजमान सिद्धेश्वर का मूल नाम त्रिशूलीश्वर है।
केदार क्षेत्र से एक देवता भगवान ईशानेश्वर हैं, जो प्रह्लादेश्वर मंदिर में बेनाम हैं। कुमार स्वामी मठ के मंदिर विजया को इंद्रेश्वर कहते हैं, जबकि वह महासिद्धिश्वर है। मदनपुरा में जो तिलभांडेश्वर महादेव कहे जाते हैं, वह अब तक की खोज में जांगलेश्वर महादेव निकले हैं। तिलभांडेश्वर नाम का कोई लिंग काशीखंड या काशी के अन्य माहात्म्य में नहीं मिलता है। विभांडेश्वर लिंग का जिक्र है और वह भी भेलूपुर चौराहे के पास हैं।
मूल चिंतामणि गणेश हैं ईश्वरगंगी पर विराजमान
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के पास एकादश रुद्र में शामिल नकुलीश्वर थे, वह अक्षयवट में देव्यानीश्वर लिंग था क्योंकि नकुलीश्वर पांचपांडव के पास बेनाम पड़े हैं। विश्वनाथ मंदिर में जिनको सत्यनारायण जी कहते हैं वहां विष्णु जी की प्राचीन मूर्ति का स्थान है। उस मूर्ति के साथ जो देवी हैं वह वीरुपाक्ष गौरी हैं। जिन्हें लोग संतानेश्वर कहते हैं, वह शंखेश्वर हैं। जिन्हें लोग अमृतेश्वर कहते हैं, वह लिखितेश्वर हैं। मूल अमृतेश्वर विश्वनाथ धाम में हैं।
इसी तरह 56 विनायक में सोनारपुरा में जिन्हें काशी खंड का चिंतामणि गणेश या लंबोदर विनायक कहा जाता है वह स्थापित हैं। क्योंकि मूल चिंतामणि गणेश ईश्वरगंगी विराजमान हैं। लंबोदर विनायक वच्छराजघाट भदैनी पर है, जिन्हें नाम के अभाव में लोग वच्छराज गणेश कहकर पूजते हैं। काशी की कई मूल देवियों, दुर्गा और चंडिका व योगिनियों के नाम बदले गए हैं।
नामकरण में इन पुस्तकों व पुराणों की मदद
स्कंदपुराण, काशी खंड, पद्म पुराण, लिंग पुराण, काशी रहस्य, ब्रहम वैवर्त, काशी महात्मय, मित्र मिश्र, कृत कल्पतरू, त्रिस्थलीय सेतु, तीर्थ चिंतामणि सहित अन्य।