कर्णाटक की राजधानी और भारत की सिलिकॉन वैली के नाम से मशहूर बंगलौर शहर के राकेश का एक अच्छा-खासा बिजनेस है। बिजनेस के सिलसिले में वे दुनिया के कई देशों में और शहरों में गए और वहां काम किया। बिजनेस जगत में अच्छा-ख़ासा नाम किया। लेकिन आज दुनिया इन्हें ‘डॉग फादर’ के नाम से जानती है। 48 साल के राकेश बताते हैं कि, “कभी उनके लिए सफल होने का मतलब था कि कई गाडियां और घर का मालिक होना। एक समय ऐसा भी था जब उनके पास 20 से अधिक गाडियां थीं। लेकिन अब उनकी सोच और मकसद बदल चुका है। अब जीवन का एक मकसद है कि मैं कितने ज्यदा कुत्त्तों की जान बचा सकता हूं।”

राकेश बताते हैं कि साल 2009 में वह एक दिन अपने घर एक 45 दिन का Golden Retriever ब्रीड का कुत्ता लेकर आए। उन्होंने उसका नाम ‘काव्या’ रखा। कुछ महीनों बाद एक घटना हुई, हर रोज़ की तरह वह अपने डॉग के साथ वॉक पर निकले और उस दौरान उन्हें एक Puppy दिखाई दिया। यह Puppy बारिश से जैसे-तैसे अपनी जान बचा पाया था। वह उसे घर ले आए और उसका नाम रखा लकी। बस यहीं से उन्होंने स्ट्रीट डॉग्स को बचने और उनके पालन-पोषण का सिलसिला शुरू हुआ। शुरुआत में, इसका विरोध खुद उनकी पत्नी ने भी किया था लेकिन बाद वह ही उनकी सबसे बड़ी सहयोगी बनीं। उनकी पत्नी ने एक ज़मीन ख़रीदकर एक फ़ार्म हाउस बनाया और इन डॉग्स को आश्रय दिया।

एक कुत्ते को बचाने से शुरू हुआ यह सिलसिला धीरे-धीरे सैकड़ों की संख्या में पहुंच गया। जिसके बाद राकेश ने Voice of Stray Dogs (VOSD) नाम की संस्था रजिस्टर करवाई, जो स्ट्रीट डॉग्स और उनके पुनर्वास के लिए काम करती है। वह हर महीने 15 लाख रुपये इन डॉग्स की केयर में लगाते हैं। राकेश की संस्था VOSD में 90 प्रतिशत फ़ंड उनकी ख़ुद की टेक फ़र्म (TWB) से ही आता है। उन्होंने ऐसी तकनीक, संसाधन और इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया, जो डॉग्स के प्रोटेक्शन में काम आता है।

यहां मानसिक, फिजिकल और मेडिकली बीमार कुत्तों का ध्यान रखा जाता है। राकेश की संस्था में सिर्फ स्ट्रीट डॉग्स ही नहीं बल्कि पुलिस और सेना में सेवा दे चुके कुत्ते भी रहते हैं। चूंकि एक उम्र के बाद कुत्तों को सेना या पुलिस से रिटायर कर दिया जाता है। जिसके बाद इन्हें अलग-अलग संस्थाओं को दे दिया जाता है। राकेश की संस्था भी कई ऐसे कुत्तो का पालन-पोषण करती है।