महाराष्ट्र के सांगली जिले के एक गांव ने इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स और सोशल मीडिया के इस्तेमाल से दूरी बनाने के लिए नायाब तरीका अपनाया है। डिजिटल डिटॉक्सिंग के लिए गांव के मंदिर से हर शाम 7 बजे एक सायरन बजता है। यह इस बात का संकेत होता है कि लोगों अपने मोबाइल फोन, TV और अन्य गैजेट्स बंद कर दें। मोहित्यांचे वडगांव नाम के इस गांव में 3,105 लोग रहते हैं।
इस सायरन से यह भी संकेत दिया जाता है कि लोग किताबें पढ़ें और एक-दूसरे से बात करें। दूसरा अलार्म 8.30 बजे बजाया जाता है, जो इस बात का संकेत होता है कि डिटॉक्स पीरियड खत्म हो चुका है। यह रूटीन रविवार को भी फॉलो किया जाता है। अहम बात यह है कि गांव के लोग इस नई पहल में बड़े उत्साह के साथ हिस्सा ले रहे हैं।
स्टूडेंट्स को पसंद आ रही यह पहल
दसवीं में पढ़ने वाली एक स्टूडेंट गायत्री निकम ने इस पहल की तारीफ करते हुए बताया कि उसके दोस्त को कोविड लॉकडाउन के दौरान फोन और टेलीविजन की लत का शिकार हो गए थे। बिजली कट जाने के बाद भी किताबों और स्टडी मैटेरियल पर कम ही ध्यान जाता था।
गांव के एक व्यक्ति ने कहा कि गांव में महिलाएं टेलीविजन धारावाहिक देखने में व्यस्त रहती थी। इस दौरान बच्चे पेरेंट्स निगरानी से दूर हो जाते थे। लेकिन अब शाम 7 बजे से 8.30 बजे तक बच्चे पढ़ाई करते हैं। इस दौरान पेरेंट्स भी उनकी मदद करते हैं।
स्वतंत्रता दिवस से पहल की शुरूआत हुई
सरपंच ने बताया कि स्वतंत्रता दिवस पर हमने महिलाओं की एक ग्राम सभा बुलाई और एक सायरन खरीदने का फैसला किया। इसके बाद आशा कार्यकर्ता, आंगनबाड़ी सेविका, ग्राम पंचायत कर्मचारी और रिटायर्ड टीचर्स डिजिटल डिटॉक्स के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए घर-घर गए।
उन्होंने आगे कहा बताया कि यह गांव स्वतंत्रता सेनानियों का घर रहा है। हमारे गांव ने राज्य और केंद्र सरकारों से स्वच्छता के लिए पुरस्कार जीता है। फिलहाल शाम 7 बजे से 8.30 बजे के बीच लोग अपने मोबाइल फोन एक तरफ रखते हैं, टेलीविजन सेट बंद कर देते हैं और पढ़ने-लिखने और बातचीत पर फोकस करते हैं। इस पहल को लागू किया जा रहा है या नहीं, इसकी निगरानी के लिए एक वार्ड-वार कमेटी बनाई गई है।
कोविड लॉकडाउन के दौरान फोन की लत बढ़ी
यह आइडिया मोहित्यांचे वडगांव गांव के सरपंच विजय मोहिते ने रखा था। मोहिते ने बताया कि कोरोना के दौरान स्कूल बंद हुए थे। ऑनलाइन क्लासेस के लिए बच्चों के हाथों में मोबाइल फोन आ गए, जो क्लासेस खत्म होने के बाद भी बहुत देर तक उनके पास रहते थे। जबकि माता-पिता के टेलीविजन देखने के घंटे बढ़ गए।
जब क्लासेस ऑफलाइन मोड में फिर से शुरू हुईं, तो टीचर्स ने महसूस किया कि बच्चे आलसी हो गए हैं। वे पढ़ना-लिखना नहीं चाहते थे और ज्यादातर समय फोन पर बिताते थे। गांव वालों के घरों में अलग से स्टडी रूम की व्यवस्था नहीं थी। इसलिए मैंने सबके सामने डिजिटल डिटॉक्स का प्रस्ताव रखा।