वेस्ट यूपी में भाजपा की बढ़त से विपक्षियों की बेचैनी बढ़ी
मुसलिम वोटों में औवैसी की सेंधमारी से तलाश रहे सुरक्षित ठिकाना
रालोद से हाथ मिलाने के बाद भी सपा के माथे पर चिंता की लकीरें
जयंत चौधरी से लेकर चंद्रशेखर आजाद और इमरान मसूद तक की छटपटाहट आ रही सामने
वेस्ट यूपी में भाजपा की जन आशीर्वाद यात्रा के बाद बदले माहौल से विपक्षी दलों की बेचैनी बढ़ गई है। रही सही कसर विपक्षी दलों की मुसलिम वोटों की राजनीति में एआईएमआईएम के मुखिया असदउद्दीन ओवैसी की सेंधमारी ने पूरी कर दी है। जिस कारण मुसलिम वोटों के बदौलत विधायकी जीतने के अरमान रखने वाले सूरमाओं के पेशानी पर बल आ गया है और अब वह सुरक्षित ठिकाना ढूंढ रहे हैं।
पश्चिमी यूपी में भाजपा की बढ़त से रालोद मुखिया जयंत चौधरी से लेकर भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद और कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव इमरान मसूद तक की छटपटाहट सामने आ रही है। इस बारे में चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. राजेंद्र पांडेय का कहना है कि पश्चिमी यूपी में भाजपा पिछले कुछ दिनों में काफी मजबूत हुई है। इसका असर विपक्ष पर पड़ रहा है। रालोद के बेस वोट जाट और मुसलिम में सेंधमारी हो चुकी है। जाट वोट भाजपा को, तो मुसलिम वोट ओवैसी को भी जाने की संभावना है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि सपा-रालोद गठबंधन के बावजूद दोनों दलों के मुखिया के माथे पर चिंता की लकीरें कायम हैं। रही बात पश्चिमी यूपी में दलित वोटों की तो, अब भीम आर्मी का वजूद नहीं बचा है। बिहार में जो हश्र कन्हैया कुमार का हुआ था, वही यहां इनका होने वाला है। भाजपा को पिछले कई चुनावों में बड़ी मात्रा में दलित वोट मिला है और आने वाले समय में संभावना है कि इस बार दलित के साथ ओबीसी वोट भी भाजपा को मिलेगा।
मेरठ निवासी सच संस्था के अध्यक्ष डॉ. संदीप पहल का कहना है कि हिंदुओं के खिलाफ भड़काऊ भाषणों से इमरान मसूद राजनीति में चमका, लेकिन वेस्ट यूपी में ओवैसी की इंट्री से मुसलिम वोटों की राजनीति डगमगा गई है। इसलिए इमरान मसूद एंड कंपनी सपा के रूप में नया ठिकाना तलाश रहे हैं। उन्हें डर है कि अगर मुसलिम वोट बंटा, तो हार तय है। हिंदुओं का वोट सपा के माध्यम से लेने के लिए यह इमरान की नई चाल है।
सहारनपुर में पत्रकार महेश शिवा कहते हैं कि पश्चिम में मुसलिमों के वोटों के बिखराव का लाभ भाजपा को मिल रहा है। हालांकि इमरान मसूद के जाने से सपा मजबूत होगी, लेकिन सपा को कितना लाभ मिल पाएगा, यह आने वाला वक्त ही बता पाएगा। क्योंकि इससे पहले सपा और बसपा ने भी गठबंधन किया था, लेकिन बहुत कारगर साबित नहीं हो पाया था।