धोती-कुर्ता पहन लगाए चौके छक्के
कॉमेंट्री भी संस्कृत में, खिलाड़ी बोले धावनम-धावनम
विश्व स्तर पर जहां कोरोना संक्रमण का भय व्याप्त है, वहीं मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में संस्कृत को बचाने के लिए वैदिक ज्ञान अर्जित करने वाले विद्यार्थियों ने अंग्रेजों के खेल क्रिकेट को अपने पुरातन सभ्यता से जोड़कर खेला। क्रिकेट खेल रहे खिलाड़ी धोती-कुर्ता पहने थे, तो संस्कृत में मैंच की कॉमेंट्री भी की जा रही थी। इतना ही नहीं खिलाड़ियों के माथे पर त्रिपुंड था तो गले में रूद्राक्ष की माला थी। खिलाड़ियों के इस मैच को देखते दर्शक भी पहुंचे, जिन्होंने भी खूब आनंद उठाया।
प्राचीन भाषा संस्कृत को जीवंत करने के लिए मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में एक विद्यालय ने अनूठा प्रयोग किया। अंग्रेजों के खेल क्रिकेट में पंडिताई का ज्ञान ले रहे विद्यार्थियों को प्राचीन वेशभूशा में मैदान में उतार दिया। खिलाड़ियों ने भी संस्कृति को बचाने के लिए संस्कृत भाशा में खेल खेलते हुए बातचीत की और मैच को लुत्फ उठाकर संदेश दिया कि संस्कृत का त्याग नहीं करें, बल्कि संस्कृत को भी अन्य भाशाओं की तरह अर्जित करें। संस्कृत ही हमारी वह भाषा है कि जिसमें वेद, पुराण लिखे गए हैं।
दरअसल हुआ यह है कि राजधानी भोपाल महर्शि महेश योगी की जयंती पर वैदिक पंडितों ने संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए इस प्रतियोगिता का आयोजन किया था। प्रतियोगिता में पंडित और पंडिताई का ज्ञान अर्जित कर रहे विद्यार्थियों ने भाग लिया। पारंपरिक धोती कुर्ता पहने दोनों बल्लेबाज तेजी से रन भागने की कोशिश में और नेपथ्य में धाराप्रवाह संस्कृत में कमेंट्री का आनंद अपने आप में अनूठा ही माना जाएगा। वैदिक मंत्रों के साथ हुई। धोती-कुर्ता पहनकर क्रिकेट के मैदान में सभी खिलाड़ी उतरे। क्रिकेट की पिच पर वैदिक मंत्रोच्चार के बीच चित और पट कर टॉस किया गया। । मैच के दौरान शॉट लगाने के बाद बल्लेबाज रन भागते हुए ’धावनम-धावनम’ यानी रन दौड़ो कहते हुए सुनाई दिए। इस मैच की खास बात यह थी कि भले ही खिलाड़ी आम क्रिकेट खिलाड़ियों से कुछ अलग लग रहे हों, लेकिन उनमें जीत को लेकर जुनून की कोई कमी नहीं थी। वहीं संस्कृत में हो रही कमेंट्री मैच में चार चांद लगा रही थी।
गौरतलब है कि भोपाल में हर वैदिक क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन हर दो साल में किया जाता है। इसे लोग लुंगी और धोती क्रिकेट भी कहते हैं। खिलाड़ियों का ड्रेस ऐसा ही होता है। खिलाड़ी लुंगी और धोती पहनकर ही मैदान में खेलते हैं।
संस्कृत को बढ़ावा देने खेला ऐसा खेल
मैच के आयोजकों के अनुसार इस तरह की प्रतियोगिता का उद्देश्य संस्कृत भाषा को बढ़ावा देना है।राजधानी भोपाल में दो साल पहले भीं ऐसा मैच खेला गया था, जिसमें खिलाड़ी धोती कुर्ता पहने नजर आए थे। उनके माथे पर त्रिपुंड, टीका, गले में रुद्राक्ष की माला थी। प्रतियोगिता का यह दूसरा साल था।
नाम भी संस्कृत में
बल्लेबाज को वल्लक, बॉलर को गेंदक, पिच को क्षिप्या, बाल को कुंदुकम, विकेटकीपर को स्तोभरक्षक, छक्के को षठकम, चौक को चतुष्कम, रन को धावनम और फील्डर को क्षेत्ररक्षक नाम दिए गए। इतना ही नहीं मैच की कॉमेंट्री भी संस्कृत में ही की गई।
पुरस्कार के रूप में वेदों की किताब
दो साल पहले खेले पहले क्रिकेट मैच में प्लेयर ऑफ द मैच को वेद की किताब दी गई थी, जबकि प्लेयर ऑफ द सीरीज को पंचांग दिया गया था। इस बार भी विजेता टीमों को नकद पुरस्कार के साथ खिलाड़ियों को वैदिक पुस्तकें और सौ साल का पंचांग दिया गया।
वेदों के अनुसार अनुष्ठान कराने वाले होते हैं खिलाड़ी
संस्कृति बचाओ मंच के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर तिवारी ने बताया कि इस स्पर्धा में वे खिलाड़ी भाग लेंगे जो वेदों के अनुसार अनुष्ठान कराते हैं। उन्होंने बताया कि यह स्पर्धा का दूसरा साल है और सारे प्रतियोगी वैदिक पंडित हैं जो पारंपरिक धोती कुर्ता पहनते हैं। वे एक दूसरे से संस्कृत में बात करते हैं और मैच की कमेंट्री भी संस्कृत में होती है। उन्होंने कहा कि टूर्नामेंट के आयोजन का उद्देश्य संस्कृत भाषा को बढावा देना और वैदिक परिवार में खेल भावना बढाना है। विजेता टीमों को नकद पुरस्कार के साथ खिलाड़ियों को वैदिक पुस्तकें और सौ साल का पंचांग दिया जाएगा।
द्वारा राजेंद्र पाराशर पत्रकार भोपाल